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🌧️ एपिसोड 1: पहली बूँद
> कभी-कभी एक अनजानी सी टक्कर, एक किताब की गिरी हुई आवाज… और एक नम मौसम, हमारी ज़िंदगी का रुख बदल देता है।
अध्याय 1: बुकस्टोर के कोने में
दिल्ली की गलियाँ उस दिन गीली थीं... लेकिन उसकी आँखों के कोने में कुछ सूखा हुआ पड़ा था।
जान्हवी उन गिनी-चुनी लड़कियों में थी जो बारिश को सिर्फ भीगने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए पसंद करती थीं। उसके लिए हर बूँद एक कविता थी — अधूरी, लेकिन दिल से लिखी हुई।
वो लाजपत नगर के एक पुराने बुकस्टोर में दाखिल हुई, जिसे 'Sagar Books & Co.' कहा जाता था।
ये उसकी शरणस्थली थी — जहाँ वो अपने मन की खामोशी को शब्दों की भीड़ में छुपा लेती थी।
काँपते हाथों से उसने "Love in the Time of Rain" उठाई। उसका दिल उस किताब के हर लफ्ज़ में खुद को ढूंढता था।
लेकिन आज वहाँ कोई और भी था...
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अध्याय 2: वो कैमरा वाला लड़का
विराज, एक फ्रीलांस फ़ोटोग्राफ़र, जो सुनने से ज़्यादा देखने में यकीन रखता था।
वो उस दिन स्टूडियो के लिए फोटो लेने निकला था… लेकिन बारिश ने उसके प्लान को धो डाला।
“जहाँ बारिश होती है, वहाँ सच्ची तस्वीरें बनती हैं…”
उसने मन में सोचा और सामने दिखे बुकस्टोर की ओर चल पड़ा।
उसका कैमरा भीग चुका था, लेकिन आँखों की चमक वैसी ही थी — बेचैन और क्यूरीयस।
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अध्याय 3: पहली मुलाकात
वो स्टोर के उसी कोने में आया, जहाँ जान्हवी किताबें छाँट रही थी।
एक हल्की टक्कर — जान्हवी की किताब ज़मीन पर गिरी।
"ओह! सॉरी..." जान्हवी झुकी।
“कोई बात नहीं। इत्तेफाक़ था…” विराज ने किताब उठाई। Love in the Time of Rain।
"काफ़ी सिंबॉलिक है, बारिश और प्यार?"
उसने मुस्कराते हुए कहा।
जान्हवी पहली बार उसकी आँखों में देखती है — एक गहराई थी, जैसे कोई अधूरी कहानी बताना चाहता हो।
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अध्याय 4: कुछ पल, कुछ सवाल
“तुम्हें बारिश पसंद है?” जान्हवी ने धीरे से पूछा।
"पसंद नहीं... इश्क़ है। जैसे हर बूँद मुझे बताती है कि कहीं कुछ अधूरा है, जिसे पूरा करना है।”
विराज ने जवाब दिया, और कैमरा की ओर इशारा किया।
“तुम्हें फोटोग्राफी पसंद है?”
"हाँ... क्योंकि तस्वीरें वो कहती हैं जो लोग नहीं कह पाते।"
वो बातों में उलझ गए — जैसे पहली बार कोई उन्हें सु रहा हो, समझ रहा हो।
स्टोर के मालिक ने कहा, "बेटा अगर बातें ही करनी हैं, तो चाय मँगवा देता हूँ।"
दोनों हँस पड़े। बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं — जैसे उनका अपना ताल है।
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अध्याय 5: नाम अनजान, एहसास गहरा
जब जान्हवी बाहर निकलने लगी, विराज ने कहा, “अगर कभी बारिश दोबारा करे… तो मैं यही रहूँगा। इसी बुकस्टोर में।”
वो हँस दी। "ठीक है। अगली बारिश में फिर मिलते हैं?"
“पक्का।” उसने उँगली उठाई — जैसे कोई वादा किया।
नाम पूछना भूल गए... लेकिन दिल ने शायद नाम से ज़्यादा पहचान लिया था।
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📖 अध्याय 6: डायरी के पन्नों में
रात को जब बारिश की आवाज़ खिड़की से अंदर आ रही थी, जान्हवी ने अपनी पुरानी डायरी खोली।
उसके पन्ने थोड़े पीले, थोड़े गीले थे — जैसे उनकी भी एक कहानी हो।
वो टक्कर, वो आँखें… उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं।
> “आज कुछ अलग हुआ,” उसने लिखना शुरू किया।
> “एक लड़का जिससे नाम नहीं पूछा, लेकिन उसकी बातें रुकी नहीं।
> मुझे लगा जैसे मेरी ख़ामोशियाँ उसके सवालों से डर गईं।”
वो पंक्तियाँ लिखते हुए उसके हाथ काँप रहे थे।
वो मुस्कराई। “क्या कोई पहली बार ऐसा हुआ है… कि मैं किसी अनजान से खुल गई हूँ?”
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📷 अध्याय 7: विराज का कैमरा
उधर विराज ने भी होटल लौटकर अपना कैमरा खोला।
आज उसने सिर्फ एक तस्वीर ली थी — खिड़की से बाहर बारिश में दिखती जान्हवी की झलक।
वो बहुत क्लियर नहीं थी — थोड़ी धुंधली, लेकिन बहुत सच्ची।
> “ये लड़की तस्वीरों से ज़्यादा है,” उसने मन ही मन कहा।
> “उसकी आँखें... जैसे कई मौसम जी चुकी हैं।”
विराज ने अपनी जर्नल में कुछ लिखा:
> *“आज बारिश ने कोई कहानी लिखी है,
> कोई मिलावट नहीं,
> सिर्फ वो जो दिल तक पहुँचती है।”*
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☕ अध्याय 8: अगली सुबह की तैयारी
सुबह जान्हवी अपनी दोस्त रीमा से मिली।
> “कल क्या हुआ? इतना मुस्कुराई कैसे?”
> “कुछ नहीं,” जान्हवी ने कहा — लेकिन उसकी आँखों ने सब बता दिया।
रीमा हँसी, “देखना अगली बारिश कब होगी, ताकि तू फिर बुकस्टोर जाए।”
जान्हवी ने कहा, “अगर इत्तेफाक़ है... तो होगा।”
वो जानती थी — दिल अब इत्तेफाक़ पर भरोसा करने लगा है।
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🌆 अध्याय 9: दोपहर की हलचल
दोपहर में जान्हवी एक आर्ट गैलरी गई — वहाँ उसका एक स्केच डिस्प्ले होने वाला था।
वो स्केच थी: एक लड़की जिसकी छतरी टूटी थी, लेकिन वो फिर भी मुस्कुरा रही थी।
वह पीछे मुड़ी — वहाँ विराज खड़ा था।
“ये तुम्हारा काम है?” उसने पूछा।
“हाँ… लेकिन इसे देखना आसान नहीं,” जान्हवी बोली।
विराज ने कहा, “तस्वीर कभी आसान नहीं होती। सिर्फ सच्ची होती है।”
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🌧️ अध्याय 10: वादा फिर से
गैलरी के बाहर फिर बारिश शुरू हो गई।
जान्हवी बाहर आई, और विराज उसके पीछे।
> “तुमने कहा था कि अगली बारिश में तुम्हें यहीं मिलेगा…”
> “और तुम मिल गए,” जान्हवी ने मुस्कुरा कर कहा।
दोनों छतरी के बिना भीगते रहे — सड़क किनारे खड़े, एक-दूसरे की आँखों में बारिश ढूँढते हुए।
विराज ने धीमे से कहा,
> “शायद ये बूँदें हमें फिर जोड़ें… ताकि हम जान पाएँ कि ये प्यार है, या बस एक टक्कर थी।”
जान्हवी बोली,
> “अगर ये पहली बूँद थी… तो मैं अगली के इंतज़ार में रहूँगी।”
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🌈 एपिसोड 1 का समापन
- दो अजनबी… एक बुकस्टोर… एक बारिश की बूँद
- आँखों में इश्क़ की पहली छाया
- भावनाओं की शुरुआत, नामों के बिना
- एक वादा — बारिश फिर होगी... तो मिलेंगे फिर
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अगर आपको यह पूरा एपिसोड पसंद आया, तो मैं कल पेश करूँगा
एपिसोड 2 — “भीगी बातें, अधूरी कोशिशें” 💕
इसमें जान्हवी और विराज थोड़े और करीब आएँगे, लेकिन एक पुरानी तस्वीर सब कुछ बदलने वाली है।
Writer: Rekha Rani